वर्ल्ड हेल्थ-डे: 1700 किसानों ने तय किया रसोई तक सेहत पहुंचाएंगे


425 पंचायतों में किसानों के बीच जैविक खेती कर लोगों को बीमारियों से बचाने की मुहिम सहित कई छोटी-बड़ी कोशिशें।

तिंवरी-मथानिया में किसानों ने रसायन मुक्त खेती अपनाई
तिंवरी-मथानिया में कृषि उत्पादन में कमी आई तो भारतीय किसान संघ की जोधपुर इकाई ने नई शुरुआत की। रसायन मुक्त खेती को लेकर 425 पंचायतों में जागरूकता रैली निकाली। 1700 किसान जुड़े व पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करने का संकल्प लिया। तुलछाराम चौधरी बताते हैं कि 1 दशक से यहां स्थितियां बदल गईं। हमने हर पंचायत में किसानों को जैविक खेती के बारे में बताया। 1700 किसानों ने कुछ हिस्से में जैविक खेती करना तय किया। शिविर लगाकर इन्हें ट्रेनिंग दी।
बिना केमिकल मूंग, मोठ, तिल उगा रहे हैं पूर्व आर्मी कैप्टन
दांतीवाड़ा के बाबू खां 2001 में ऑनरेरी कैप्टन पद से रिटायर हुए। ड्यूटी के दौरान पंजाब थे तो पता चला कि यहां हर घर में दो से तीन लोग कैंसर पीड़ित हैं। जैविक खेती करने की ठानी और 2004 से जुट गए। परिवार-रिश्तेदारों के लिए 15 बीघा में खेती करते हैं। कहते हैं कि आने वाली पीढ़ी के लिए स्वस्थ जमीन तो छोड़कर ही जाएं। मैंने यही सोचकर जैविक खेती शुरू की कि मैं मेरी जमीन व परिवार को जहर वाले अनाज से बचाऊं। 15 बीघा में मूंग, मोठ, तिल, गेहूं, बैर उगाते हैं।
जैविक खेती के फायदे देखे तो 10 से 40 बीघा में करने लगे पैदावार
दुर्गाराम प्रजापत तीन साल से जैविक खेती कर रहे हैं। पहले साल दस बीघा में बाजरी व गेहूं बोना शुरू किया। बाद में चालीस बीघा खेत में देसी खाद व गोमूत्र से उपचारित फसल लेनी शुरू की। अब गेहूं, सौंप, प्याज, लहसुन, जीरा की खेती कर रहे हैं। करीब ढाई हजार अनार के पौधे भी लगाए हैं। प्रजापत बताते हैं कि सबसे पहले दिमाग में यही आया कि पैसे कमाने की होड़ में कब तक परिवार, पशु और जमीं को कीटनाशक खिलाते रहेंगे। अब जो भी जैविक फसल होती है वह छह भाइयों के परिवार के लिए काफी होती है। पशुओं के लिए शुद्ध चारा और उनसे दूध व घी मिल जाता है।