
11 वां अखिल भारतीय अधिवेशन
दिनांक 19,20 व 21 फरवरी 2016 जयपुर राजस्थान
प्रस्ताव क्रमांक:-1
देश का हम भंडार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेंगे।
भारतीय किसान संघ ने ’’देश का हम भंडार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेंगे’’ इस नारे को लेकर अपना कार्य शुरू किया। किसानों की सारी समस्याओं के समाधान के लिए सर्घष करना और अच्छी खेती करते हुए देश के भंडार को भरना, यह भारतीय किसान संघ की पहचान बन गयी।
देश का किसान अभी भी सारी समस्याओं से मुक्त नहीं हो पाया है। अभी भी खाद,बीज,सींचाई,कृषिऔजार, कृषिउपज, बजट आदि समस्याओं से जूझते हुये उनमें सुधार करने हेतु प्रयासरत है। इन सभी समस्याओं को झेलते हुए बिना किसी सरकारी, राजनेतिक , प्रशासनिक व व्यवसायिक सहायता के और उनकी उपेक्षा के बावजूद भी आज किसानों ने देश के भंडारों को भर दिया है। आज देश में 2650 लाख टन से अधिक खाद्यान प्रति वर्ष उत्पन्न होता हैं। जब की देश में सरकार के पास केवल 670 लाख टन खाद्यान भंडारण की ही व्यवस्था है।
फूड़ एण्ड एग्रीकल्चर (एफ.ए.ओ), की पिछली सवें रिर्पोट में कहा गया हैं कि सन् 2050 में भारत को 2400 लाख टल खाद्यान की आवश्यकता होगी जबकि देश के किसानों ने मौजूदा समय में ही इस लक्ष्य से भी अधिक उत्पादन कर लिया है।
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी आज किसान की इतनी दुर्दशा हो रही है कि किसान शहर की ओर पलायन पर मजबूर हो रहा हैं किसान के परिवार के लोग अब खेती करने के इच्छुक नहीं हैं सरकारी आंकडे के अनुसार 42 प्रतिशत किसान खेती छोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं यदि ऐसा होता हैं तो इतने बडे देश की आबादी को खिलाने के लिए कोई भी दूसरी व्यवस्था करना कठिन होगा।
विषय गंभीर हैं, सभी समस्याओं की जड़ में किसानों को उनके उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिलना ही मुख्य कारण लगता हैं । इस विषय को 29 व 30 अप्रेल 2013 को देश के सारे सासदों को आवगत करने के लिए भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ता उनसे मिले थे जिससे परिणाम स्वरूप विषय कि गंभीरता की ओर ध्यान देते हुए सभी राष्ट्रीय दलों ने अपनी अपनी घोषणा-पत्रो में लाभकारी मूल्य देने की बात को स्वीकार किया है।
साथ ही साथ संसद की स्थायी समिति (कृषि) ने जून 2013 के प्रथम सप्ताह में इस सम्बन्ध में सूचना भी जारी की है। इसके बावजूद भी किसानों को लाभकारी मूल्य में क्यों देरी हो रही हैं।
अतः भारतीय किसान संघ इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित करता हैं कि ’’सरकार उचित पद्धति का प्रयोग करते हुये लाभकारी मूल्य देने की घोषणा करें और किसानों को कब और कैसे देंगे इस बारे में कार्यक्रम की भी घोषण करें।’’
प्रस्ताव क्रंमाक 2
’’किसानों का अनुदान किसान के खाते में’’
कृषि क्षेत्र में किसानों की उपज का लागत कम करने के लिए सरकारों द्वारा प्रतिवर्ष अनेक प्रकार के अनुदान कम्पनीयों को दी जाती हैं। खाद कृषि यंत्र- जैसे ट्रेक्टर, थ्रेसर, हारवेशटर, रोटावेटर, पावरटिलर, सिंचाई पम्प, स्पिंरकलर, ड्रीप आदि में लाखों करोड़ो रूपये किसानों के अनुदान के नाम पर कम्पनीयों को दिया जाता है। सरकारी आंकडो से पता चलता हैं कि केवल रासायनिक खाद कम्पनीयों को एक लाख करोंड़ रूपये से भी अधिक की सहायता प्रतिवर्ष दी जाती है।
देश में रासायनिक खाद का उपयोग अधिकतम 250 जिलों में (कुल जिलों की संख्या से आधे से कम) ही होता हैं अतः देश के सारे किसानों को खाद पर अनुदान नहीं मिलता हैं।अन्य अनुदानों के सम्बन्ध में भी यही स्थिति है।
इस प्रकार से सरकारी धन का अपव्यय व दुरूपयोग भी होता हैं। तथा किसानों को उसका समुचित लाभ भी नही मिलता हैं इसके अतिरिक्त भ्रष्टचार और कालाबाजारी को भी प्रोत्साहन मिलता है।
अतः भारतीय किसान संघ सुविचारित सोच के साथ यह प्रस्ताव पारित करता हैं कि केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकारों द्वारा किसानो को दिया जा रहा सभी प्रकार का अनुदान फसल की बुवाई-बिजाई करने के कम से कम साठ दिन पुर्व सीधे किसान के खाते में दी जाये।
प्रस्ताव क्रमांक 3
’’जहर नहीं जैविक चाहिए’’
देश की पहली जीएम फसल , बी.टी. कपास 2002 में आया था । बी.टी. कपास के बोलवर्म को रोकने हेतु लाया गया था, मगर 2005-06 आते-आते वह विफल हो गया। कीड़ांे ने फसल खाना शुरू कर दिया। देश के कपास शोध केन्द्र ने भी घोषणा की, कि यह बीज अधिक उपजाऊ वाला नहीं हैं। इसका मतलब यह बीज टिकाऊ एवं परिणाम दायक भी नहीं हैं। अभी जी.एम. सरसों की बात चल रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ वैज्ञानिकों ने उसे विकसित किया हैं, ऐसा सुनने में आ रहा हैं। जी.एम. सरसों पुरूष नपुंसकता के लिए बनाया गया है, मगर प्रसार यह हो रहा हैं कि यह अधिक उपजाऊ वाला है। पुरूष नपुंसकता के बारे में कोई चर्चा नहीं कर रहा हैं। जितनी फसलें जी.एम. के माध्यम से प्रक्रिया में हैं, उन में से देश में किसी भी जी.एम. फसल का अधिक उपज के लिए परीक्षण नहीं हुआ हैं। यह सारी फसलें चिर-स्थायी एवं अपरिवर्तनीय जहर पैदा करने वाली हैं।संसद की स्थायी समिति एवं सुप्रीम कोर्ट की तकनीकी विशेषज्ञों की समिति ने भी जी.एम. पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया है।
इसके विपरीत आजकल जैविक कृषि के बारे में बहुत चर्चा हैं। 2014 की आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार जैविक कृषि टिकाऊ है, अधिक उपजाऊ वाली, उत्पादकता को बढ़ाने वाली, पर्यावरण को सुरक्षित एवं संवर्द्धन करने वाली फसल हैं। सबसे बड़ी बात यह हैं कि जैविक खेती कम लागत में होती हैं जिससे किसान को तो फायदा होता ही है, साथ ही साथ उपभोक्ता को भी कम मूल्य में स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन उपलब्ध होगा।
इस कारण से दुनियाभर में जैविक उत्पाद का बोलबाला बढ़ रहा हैं। यहां तक हमारे प्रधानमंत्री ने हाल ही में जब अमेरिका गये ,तब भारत से जैविक उत्पाद मंगाकर वहां जैविक दावत दी। अभी हाल में 18 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री ने सिक्किम को गर्व से पहला जैविक राज्य घोषित किया। देश के भी अनेक किसान रासायनिक खेती छोड़ जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा चुके हैं।
इसलिए भारतीय किसान इस प्रस्ताव के माध्यम से यह मांग करता हैं किः-
(क) जी.एम. फसलों को तुरन्त प्रतिबंधित किया जाए।
(ख) जैविक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन दिया जाए।
(ग) देश के सारे कृषि विज्ञान केन्द्रो को इसी दिशा में काम करने के लिए निर्देशित किया जाए।
(घ) देश में प्रमुख 6 पर्यावरण क्षेत्रों के अनुसार 6 जैविक विश्वविद्यालय बनाए जाए।
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