भारतीय किसान संघ के लक्ष्य और उद्देश्य
भारत एक कृषिप्रधान देश है| किसान और कृषि एवं कृषिपर आधारित उद्योग अपने देश की अर्थनीति का मुख्य आधार है| किसान और कृषि के बगैर भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती| परंतु जहॉं एकतरफ पूरे विश्व में कृषि क्षेत्र का चौतरफा विकास हो रहा है, वहीं भारत में किसान असहाय बना हुआ है| अपनी लूट की जा रही है, ऐसी भावना यहॉं के किसानों के मन में निर्माण हो रही है| इस विषमता को दूर करने के लिए देश में कई संस्थाएँ, संघटन प्रयत्नरत है, पर उनमें कई तो किसी व्यक्ति/ व्यक्तिओं या किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी के प्रचारक के रूप में कार्य कर रहीं हैं| इस प्रकार की संस्थाएँ या संगठन उनके स्वार्थ के लिए या व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा की पूर्ती के लिए किसानों का उपयोग करते हैं, यह विडंबना है| यह देखते हुए किसानों में देश के प्रति उनके दायित्व के साथ साथ उनके अधिकारों के लिए जागृती लाने के लिए एक अराजनैतिक संगठन की जरूरत महसूस होने लगी थी| यही बात जान कर देश के एक ज्येष्ठ तत्त्वचिंतक, मजदूर नेता श्री. दत्तोपंतजी ठेंगडी ने भारतीय किसान संघ इस अराजनैतिक व राष्ट्रवादी संगठन की स्थापना की|
भारतीय किसान संघ का परिचय
श्री. दत्तोपंतजी ठेंगडी और श्री. भाऊसाहेब भुस्कुटेजी की मार्गदर्शन में सर्वप्रथम १९७८ में मध्यप्रदेश में भारतीय किसान संघ की स्थापना हुई| नियमानुसार पंजीकृत होने बाद इस संगठन नें पूरे जोश के साथ किसानों की समस्याओ पर ध्यान केंद्रित कर कार्य करना आरंभ किया| पंजीकरण के बाद इस संगठन की पहिली सभा होशंगाबाद जिले में कसेरा धर्मशाला में संपन्न हुई|
वहॉं किसानों की ओर से मिला प्रतिसाद देख और देशभर के किसानों के प्रश्न जानते हुए ठेंगडीजी और भुस्कुटेजी ने संपूर्ण देश की यात्रा की और सभी राज्यों के किसानों की समस्याएँ जान ली| उन्होंने पूरे देश में से किसानों के ६५० से अधिक प्रतिनिधियों का चयन किया और राजस्थान के कोटा शहर में ३,४ और ५ मार्च को एक अधिवेशन आयोजित कर ४ मार्च १९७९ में भारतीय किसान संघ के स्थापना की घोषणा की| ‘किसानों की, किसानों के लिये, किसानों द्वारा चलाये जानेवाली अराजनैतिक संघटना’ के रूप में भारतीय किसान संघ कार्य करेगा, ऐसा श्री. दत्तोपंत ठेंगडीजी ने घोषित किया|
और उसी स्वरूप में संघटनात्मक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक भूमिका निभाते हुए आज भारतीय किसान संघ देश के किसानों तथा कृषि मजदूरों की आवाज उठानेवाला और साथ ही ग्राम विकास की प्रक्रिया में सहयोग देनेवाला किसानों का एक सशक्त संघठनबन चुका है|
आंदोलनात्मक आधार
लोकतंत्र में किसानों का सम्मान कायम रखते हुए, व्यवस्था के खिलाफ सृजनात्मक संघर्ष के लिए, अहिंसात्मक आंदोलन और प्रदर्शन एक प्रभावी माध्यम है| इसी विचार से भारतीय किसान संघ ने संविधान की प्रतिष्ठा और लोकतंत्र की परंपरा को संजोते हुए किसानों की समस्याओं पर काफी आंदोलन किये; कुछ आंदोलन आज भी शुरू हैं|
बहुतांश आंदोलनों में भारतीय किसान संघ को सफलता भी हासिल हुई है| कई बार ऐसा भी हुआ है कि, भारतीय किसान संघ ने किसानों के हित में अपनी भूमिका जाहीर की और उसे सार विश्व से स्वीकृती मिली है; उसकी सराहना हुई है|
ध्वज
भारतीय किसान संघ का ध्वज गेरुए रंग का है| गेरुआ रंग देश का इतिहास, परंपरा और त्यागशील जीवन पद्धति का प्रतीक है| सुबह आकाश में सूरज उदित होता है, उस उषःकाल के समय का रंग गेरुआ होता है| सूरज नियमितता का और उषःकाल उज्ज्वल भविष्य के लिए नयी सुबह का प्रतीक माना जाता है| यह रंग अग्नि का भी होता है, जो शुद्धता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है| साधु-संत-योगी भी गेरुए रंगके वस्त्र पहनते है, जो ज्ञान और त्याग का प्रतीक है| इसीलिए गेरुआ रंग भारत की शानदार प्राचीन संस्कृती का भी प्रतीक माना जाता है| ध्वज मंं समानता हो इसलिए इसका आकार आयताकृती और लंबाई-चौडाई का अनुपात ३:२ रखा गया है| इस ध्वज के मध्य भाग में भारतीय किसान संघ का चिन्ह अंकित किया गया है

ब्रीद-वाक्य
भारतीय किसान संघ का ब्रीद वाक्य है- कृषि मित कृषस्वः| इसका अर्थ होता है- खेतीही करो| भारत के चार वेदों में से प्रथम वेद ऋग्वेद के अक्षदेवन सूक्त में दिए गये एक मंत्र में से ली गयी यह पंक्ति है| इस मंत्र में मनुष्य को- जुवॉं मत खेलो, खेती करो, खेती से ही पैसा कमा कर उससे सम्मानपूर्वक जीवन जिओ-ऐसा बताया गया है|
