कृषि देवता बलराम

Agriculture God Balramji in Power Effulgent
भारतीय किसान संघ भारत के किसानों को आत्मनिर्भर, सन्मानित और अधिकारसंपन्न देखना चाहता है| इसके लिए कृषि देवता भगवान बलरामजी के सामान शक्तिशाली और तेज प्रकट किये बिना यह होना संभव नहीं है| इस संदर्भ में एक लघुकथा हमारे धर्म ग्रंथों से ली गई है| वर्तमान अवस्थामें यह किसानों को यह प्रेरणा देगी ऐसा विश्वास है|
महाभारत कौरव-पांडवों के पितामह भिष्मजीने बलराम के भतीजे सांबकुमार और दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा के प्रेम-संबंध की बात सुनकर, उन्हें अलग करने के लिए सांबकुमार को पकडकर जेल में डालने का आदेश दिया| परंतु बलरामजी के पोते को कौन हाथ लगाये, इस सकते में सारे योद्धा आ गये| आखिर में सिर्फ दुर्योधन, कर्ण, मामा शकुनी, अश्वत्थामा, दुःशासन और शकुनी का पुत्र उलूक ये ही सिर्फ हिंमत जुटा पाए और उन्हों ने सांब कुमार को बंदी बना लिया| परंतु लक्ष्मणा सांबकुमार के सिवा अन्य किसी से भी विवाह करने को तैयार नहीं थी| इस सिथती में अब सांबकुमार के माता-पिता की बिनती करने के सिवा कौरवों के पास और कोऊ मार्ग नहीं बचा था|
तब पितामह भीष्म ने सांबकुमार के माता-पिता के आने तक उनकी राह देखने को सबसे कहा| आखिर में सारी बात पता चलते ही बलराम उनके भतीजे सांबकुमार को कौरवों के बंदिवास में से छुडाने के लिये वहॉं आ पहुँचे| लक्षमणा का सांबकुमार के साथ विवाह करने का निर्धार देख कर वे उनका विवाह कर देना चाहते थे, पर दुर्योधन ने बलरामजी को कोसते हुए कहा की, यादव कभी भरतवंश के सेवक रह चुके है, अतः भरतवंश और यदुवंश का मेल कैसे हो सकता है| दुर्योधन के इस निर्भत्सना से बलराम क्रोधित हुए और उन्होंने अपना हल हस्तिनापुर के राजमहन के सामने ही जमीन पर पटका तो जमीन से बिजली की चिनगारियॉं निकलने लगी| धरणी कंप होने लगा| सारा शहर नदी में डूबने लगा|
इससे भयभीत होकर कौरवों के दरबार के सारे योद्धा पराभूत मुद्रा में बलरामजी की शरण में आये| दुर्योधन ने भी बलरामजी की माफी मॉंगी और क्षितिशेश्वर श्री उग्रसेन के प्रतिनिधी के रूप में बलरामजी का सन्मान के साथ शहर में स्वगत किया| दुर्योधन ने लक्ष्मणा और सांबकुमार का विवाह रचाने की भी शर्त मानी परंतु बलरामजी ने, उनका दुर्योधन पर से विश्वास उड गया है, ऐसा बताते हुए दुर्योधन को अब कन्यादान भी नहीं करने दिया जायेगा और सांबकुमार-लक्ष्मणा का विवाह अब द्वारका में संपन्न होगा, ऐसा निर्णय दिया|
एक राजा को भी शासित करने की शक्ती बलरामजी में थी, यही इस लघुकथा से उद्बोधित होता है, और इसीलिए भगवान बलराम को भारतीय किसान संघ के प्रतीक के रूप में स्वीकृत किया गया है| भगवान बलराम केवल परंपरागत खेती के हामी नहीं थे तो उन्होंने खेती के प्रकार, खेती के साधन और सिंचाईं के साधनों का विकास किया| अर्थात वे हमें विकसित खेती करने और धन-धान्य से परिपूर्ण होकर हमें वैभवसंपन्न जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं|
भगवान बलराम को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है| लक्ष्मण का अर्थ होता है- शुभ लक्षणों से युक्त, सौभाग्यशाली, समृद्धीशाली, फलता- फूलता ऐसाही हमें, किसान को, भारत वर्ष को बनाना चाहते हैं| गर्ग ऋषी ने उनका नाम रखते हुए कहा था, वे सबके मन में रमें रहते है, अतः इनका नाम रहेगा राम| हम चाहते हैं, भारतीय किसान संघ सब किसानों के मन में रमा रहे| उन्हों ने कहा की जब प्रलय काल में सब कुछ समाप्त हो जाता है, तब भी ये शेष रहते हैं, अतः ये शेष हैं| ये हमें इस सत्य का दर्शन कराते हैं की, यूनान, मिश्र, रोम आदी सब विविध झंझावातों में मिट गये, किंतु हम शेष हैं| वर्तमान और भविष्य के झंझावातों में अडिग, अविचल रहने के आत्म विश्वास की प्रेरणा देते हैं| ये बलराम हैं, किसानों को संगठित होकर बलवान होने की प्रेरणा देते हैं| जयदेव ने ‘गीत गोविंद’ में लिखा है, ‘केशव धृतहलधर रूप धरे, जय जगदीश हरे’| अर्थात जगदीश्वर ने ही हलधर बलराम का रूप धारण किया है|समीकरण नियम से हम कह सकते हैं कि, हलधर ही जगदीश्वर है, अर्थात किसान ही भारत का जगदीश्वर है, भाग्य विधाता है|
भगवान बलराम का हल कृषी का, अर्थात अर्थ का, अर्थात धन-शक्ति का प्रतीक है, तो उनका मूसल बल का अर्थात संगठन-शक्ति का, अर्थात जन-शक्ति का प्रतीक है| उनका हल नव-निर्माण का, नव रचना का प्रतीक है, तो उनका मूसल दुष्ट-दमन का, सृजन संरक्षण के आश्वासन का प्रतीक है|