श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी


कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान एवं भारतीय किसान संघ के संस्थापक

 

स्वर्गीय श्री दत्तोपन्त जी ठेंगडी

 

भारत के ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, उज्ज्वल राष्ट्रनिर्माण की अभिलाषा रखकर उसके लिए सदैव प्रयत्नरत रहनेवाले कुशल संघटक, राष्ट्रप्रेमी संगठनों के शिल्पकार, द्रष्टा विचारवंत, लेखक, संतो के समान त्यागी और संयमित जीवन जीनेवाले आदरणीय श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी ने भारतीय किसानों को सन्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने के साथ, राष्ट्र के उत्थान प्रक्रिया में सहयोगी बनने की प्रेरणा देने के मूल विचार से भारतीय किसान संघ की स्थापना की| श्री दत्तोपंत जी भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान हैं|

श्री दत्तोपंत जी का जन्म १० नवंबर १९२० को भारत के महाराष्ट्र राज्य में, वर्धा जिले के आर्वी शहर में हुआ| इस गांव के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं प्रसिद्ध वकील बाबुराव दाजीबा ठेंगडी के वे ज्येष्ठ सुपुत्र थे| बचपन से ही उनके कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के संदर्भ में सच्ची लगन की झलक दिखने लगी थी| विद्यार्थी दशा में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भारत माता के प्रति अपनी वचनबद्धता का परिचय दिया| केवल१५ वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए| बतौर अध्यक्ष, उन्होंने इन स्कूलों में पढनेवाले जरूरतमंद छात्रों को आर्थिक मदत करने के लिए एक निधी के निर्माण की पहल की| १९३५ में ही उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के ‘वानर सेना’ इस युवा संगठन के आर्वी शहर शाखा का प्रमुख पद सौंपा गया| झुग्गी-झोपडियों में रहनेवाले युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी होने के लिए, उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना निर्माण करने का कार्य भी युवा दत्तोपंत ने किया| इसी कारण उन्हें १९३६ में ‘आर्वी गोवनी झुग्गी-झोपडी मंडल’ का प्रमुख (गव्हर्नर) पद भी सौंपा गया| इसी बीच, १९३६ से १९३८ तक वे ‘हिंदुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, नागपूर’ में भी सक्रिय रहे|

इसप्रकार सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य में सक्रिय होने के साथ ही दत्तोपंत जी ने नागपुर के तत्कालीन मॉरिस कॉलेज (विद्यमान- वसंतराव नाईक समाज विज्ञान संस्थान) से मास्टर ऑफ आर्टस् (एम.ए.) और लॉ कॉलेज (विद्यमान - डॉ. बाबासाहाब आंबेडकर विधि महाविद्यालय) से वकालत की पदवी (एल. एल. बी.) प्राप्त की| विद्यार्थी दशा में ही, १९४२ में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बतौर स्वयंसेवक के रूप में जुडे और आगे चलकर वहीं उनके सारे जीवन कार्य का मूल प्रेरणास्रोत बना| १९४२ से १९४४ के दौरान उन्होंने श्री वागमल नंदा सोसायटी, कालिकत, आर्य समाज, कालिकत, हिंदू महासभा, ब्रिटिश मलबार पूअर होम, कालिकत आदि संस्थाओं का कार्यविस्तार बढाने के लिए बहुमोल कार्य किया| १९५५ में श्री दत्तोपंत जी ने ‘भारतीय मजदूर संघ’ (बी. एम. एस.) की स्थापना की| एक छोटे संगठन के रूप में शुरू हुए इस मजदूर संगठन को आज न केवलविशाल रूप मिला है, बल्कि आज वह देश का प्रथम क्रमांक का मजदूर संगठन (युनियन) बना है|

५० वर्ष से अधिक समय तक दत्तोपंत जी सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान के कार्य में सक्रिय रहे| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सृजनात्मक कार्यो के लिए एक विस्तृत पृष्ठभूमी तयार करते हुए उन्होंने भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच, स्वदेशी जागरण मंच आदि कई प्रभावशाली संगठनों की स्थापना की, और उनके समृद्ध मार्गदर्शन से इन सभी संगठनों का निरंतर कार्यविस्तार होता रहा| उनके ही प्रयासों से संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय विचार केंद्र, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत आदि संगठनों का निर्माण हुआ| देश का शायद ही कोई ऐसा मजदूर संगठन होगा जिसे दत्तोपंत जी का मार्गदर्शन न मिला हो| दलित संघ, रेल्वे कर्मचारी संघ, उसी प्रकार कृषी, शैक्षणिक, साहित्यिक आदि विविध क्षेत्रों के संगठनों को उनके सक्रिय और वैचारिक मार्गदर्शन का लाभ मिला| प्रखर बुद्धिमत्ता के धनी दत्तोपंत जी का संपूर्ण जीवन - सादी जीवनशैली, अखंड कार्यमग्नता, अपने कार्य से संबंधित विषय का गहरा अध्ययन, सुस्पष्ट विचार और ध्येयनिष्ठा - से परिपूर्ण था| उन्होंने २६ हिंदी, १२ अंग्रेजी और २ मराठी पुस्तकों का लेखन किया| उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मानो गाथा है| उनकी ‘राष्ट्र’ और ‘ध्येयपथ पर किसान’ ये दो पुस्तकें तो कार्यकर्ताओं के लिए गीता के समान पथ-प्रदीपक मानी जाती हैं|

श्री ठेंगडी जी भारतीय संसद के वरिष्ठ सभागृह राज्यसभा के एक बार सदस्य भी रह चुके थे| वे १९६९ में संसदीय शिष्टमंडल के साथ तत्कालीन सोव्हियत रशिया और हंगेरी गये थे| १९७७ में स्वित्झर्लंड में आयोजित आंतरराष्ट्रीय मजदूर संघटनाओं के परिषद में, और जिनेव्हा में हुए द्वितीय आंतरराष्ट्रीय वर्णभेदविरोधी परिषद में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया| १९७९ में उन्हें, युगोस्लाव्हिया में, वहॉं के मजदूर संगठन ने, उनके देश के रोजगार नीति के संदर्भ में अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था| अमेरिका ने भी श्री दत्तोपंत जी को, अमेरिकी मजदूर संगठनों के आंदोलनों का अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था| उसी वर्ष उन्हें कॅनडा और ब्रिटन में भी आमंत्रित किया गया था| १९८५ में उन्होने ऑल चायना फेडरेशन ऑफ ट्रेड युनियन्स के आमंत्रण पर चीन गये भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधियों का नेतृत्व भी किया था| जकार्ता (इंडोनेशिया) में हुए आंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के दसवें क्षेत्रीय परिषद में भी वे उपस्थित थे| इसी वर्ष वे बांगला देश, ब्रह्मदेश (आज का- म्यानमार), थायलँड, मलेशिया, सिंगापुर, केनिया, युगांडा, टांझानिया आदि देशों में भी गये थे| जर्मनी के फ्रँकफर्ट में अगस्त १९९२ में हुए पॉंचवे यूरोपियन हिंदू परिषद में, और अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड व्हिजन २०० परिषद में भी वे शामिल हुए थे|

वे कई संगठनाओं से सक्रिय रूप से जुडे थे| उनमें से कुछ इस प्रकार है :

१) १९५०-५१ – इंटुक, मध्यप्रदेश के संगठन मंत्री

२) १९५१-५३ – भारतीय जनसंघ (मध्यप्रदेश) के संगठन मंत्री

३) १९५५ – भारतीय मजदूर संघ की स्थापना

४) १९५६-५७ – भारतीय जनसंघ के दक्षिण मंडल के संगठन मंत्री

५) १९६४-७० – राज्यसभा की सदस्यता

६) १९६५ - १९६६ – हाऊस कमिटी सदस्य

७) १९६६-७० – राज्यसभा के उपाध्यक्ष बोर्ड एवं सार्वजनिक उद्योग समिती के सदस्य

८) १९६८-६९ – केंद्रीय मजदूर संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय समिती के आमंत्रक

९) १९७०-७६ –राज्यसभा के सदस्य

१० ) १९७४ – मजदूर संगठनों के राष्ट्रीय परिषद की अध्यक्षता

११) १९७५ – राष्ट्रीय मजदूर संघर्ष समिती के समन्वयक

१२) १९७६ – (आपात्काल के दौरान) राष्ट्रीय मजदूर जन संघर्ष समिती के समन्वयक

१३) १९७९– ४ मार्च को भारतीय किसान संघ की स्थापना

१४) १९९१– स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना