अखिल भारतीय प्रबंध समिति बैठक, उदयपुर (राजस्थान)

विगत अनेक वर्षो से किसानो द्वारा समय समय पर सरकारो से अपनी समस्याओ का स्थायी समाधान निकालने की मांग की गई। किन्तु सरकारो द्वारा इसका स्थायी हल निकालने मे कोई रुचि नही दिखाई । दिनोदिन किसानो की परेशानी बढ़ती रही। पिछले कुछ समय से किसानो को कुछ उम्मीद बनी कि, अब शायद उसकी समस्याए समाप्त होगी किन्तु जब यह उम्मीद टूटने लगी तो देश के किसानो मे आक्रोश फैला। अभी हाल ही मे कृषि उत्पाद के दाम समर्थन मूल्य से नीचे आ गए, सरकार द्वारा खरीद कि पर्याप्त व्यवस्था नही थी, भुगतान भी नही हो रहा था। ऐसे अनेकों कारणो से किसान आंदोलन के लिए उद्वेलित हुये।
इन सब बातो को देखते हुये भारतीय किसान संघ ने भी कई प्रांतो मे आंदोलन शुरू किए। लेकिन भारतीय किसान संघ का यह सिद्धान्त है कि, हम हमेशा देशहित का ध्यान पहले रखेंगे। आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा, उसमे हिंसा नही होने देंगे तथा कार्यकर्ता पूर्ण अनुशासन मे रहेंगे। लेकिन आंदोलन मे मालवा मे जब हमारे आंदोलन मे कुछ बाहरी तत्व शामिल होकर हिंसा फैलाने कि जानकारी हुई तथा उसी समय सरकार द्वारा क्षेत्रीय मांगो को मान्य कर लिया गया, तब आंदोलन वापस लिया गया। हमे प्राप्त सूचना सच साबित हुई तथा उन तत्वो द्वारा हिंसा फैलाने का प्रयास किया गया।
तमिलनाडू, महाराष्ट्र, राजस्थान मे भी आंदोलन हुये। राजस्थान मे भारतीय किसान संघ द्वारा किया गया आंदोलन भी अनुशासनबद्ध और अहिंसक रहा किन्तु स्वरूप बड़ा होने से अंत मे सरकार को झुकना पड़ा तथा किसानो कि सभी मांगे मान ली गई।इसके बावजूद अभी भी किसानो मे बहुत आक्रोश व्याप्त है। इस पर हम सतत विचार कर रहे है।
भारतीय किसान संघ कि स्थापना से ही यह मान्यता रही है कि, किसान को उसकी उत्पाद का लागत मूल्य तथा उस पर लाभांश जोड़कर “लाभकारी मूल्य” प्राप्त होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से देश मे कई सरकारे आने जाने के बाद भी अभी तक “लाभकारी मूल्य” प्राप्त नही हो सका।
देश मे कृषि उत्पाद आयात निर्यात कि अब तक कोई ठोस नीति नही बन सकी। लिसके अभाव मे कृषि उत्पाद का जो आयात निर्यात होता है उसमे किसान हित को कोई महत्व नही दिया जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि बम्पर फसल आने के बावजूद या तो निर्यात प्रतिबन्धित किया जाता है या आयात किया जाता है। दोनों ही परिस्थितियो मे कृषि उत्पाद के मूल्य धराशायी हो जाते है और किसान ठगा सा रह जाता है। इस वर्ष ऐसा ही दलहन के मामले मे हुआ।
किसान के उत्पादन का सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से बाज़ार मे जब उक्त उत्पाद का दाम कम होता है तब उसकी पूर्ति के लिए सरकार द्वारा एक “मूल्य स्थिरीकरण कोष” बनाकर, “भावांतर योजना” तत्काल लागू कि जाए। जैसा कि मध्य प्रदेश एवं आंधप्रदेश मे किया गया है।
खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन एवं डेरी आदि को बढ़ावा देकर गावों से होने वाले पलायन को रोका जा सकता है। जिससे ग्रामीण युवाओ को रोजगार के अवसर, गावों मे ही उपलब्ध होंगे और नशे एवं अपराधो पर भी अंकुश लगेगा।
ऐसी गंभीर परिस्थिति मे सरकार को हड़बड़ाहट मे कर्जमाफ़ी का निर्णय न लेकर, देश के सभी किसानो को प्रति एकड़ एक निश्चित राशि तय कर सीधे उनके खाते मे जमा करने कि योजना बनाकर उसे तत्काल लागू करना चाहिए।
उपरोक्त सभी बिन्दुओ को ध्यान मे रखते हुए केंद्र एवं राज्य सरकारे संसद एवं विधान सभाओ का विशेष सत्र बुलाकर, किसान संगठनो का सहयोग लेकर, राजनैतिक मतभेद भूलकर, भारत एक कृषि प्रधान देश है इस वाक्य को चरितार्थ करने के लिए, कृषि क्षेत्र के लिए समग्र कृषि रोड मैप तैयार करे। तभी किसान कि समस्याओ का स्थायी समाधान हो सकेगा।
हमारी आगामी योजना मे अगले वर्ष पूरे देश मे भारतीय किसान संघ कि सदस्यता होने जा रही है। हमारा प्रयास है कि, देश के प्रत्येक प्रांत तक हमारी पहुच हो। सभी विकास खंडो तक हम पहुचे तथा अधिक से अधिक ग्राम समितिया बने। प्रत्येक किसान तक पहुचने का हमारा लक्ष्य है। मजबूत संगठ