भारतीय किसान संघ की अ.भा. कार्यकारिणी व प्रबंध समिति की बैठक सम्पन्न

उदयपुर, 24 जुलाई। देश की संसद एवं राज्यों की विधानसभाओं में विशेष सत्र बुलाकर, किसान संगठनों का सहयोग लेकर, राजनैतिक मतभेद भूलकर, भारत एक कृषि प्रधान देश है, इस वाक्य को चरितार्थ करने के लिए, कृषि क्षेत्र के लिए समग्र कृषि रोड मैप तैयार किया जाए, तभी किसान की समस्याओं का स्थायी समाधान हो सकेगा।
भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी व प्रबंध समिति की उदयपुर के राजस्थान कृषि महाविद्यालय परिसर में चल रही तीन दिवसीय बैठक में यह जरूरत उभर कर आई। भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष आई. एन. बस्वेगौड़ा, अखिल भारतीय महामंत्री बद्रीनारायण चैधरी, चित्तौड़ प्रांत के महामंत्री प्रवीण सिंह चैहान ने पत्रकारों के समक्ष तीन दिन तक किसानों की समस्याओं पर हुए मंथन और समाधान के लिए भविष्य की रणनीति पर पत्रकारों से चर्चा की।
अखिल भारतीय महामंत्री बद्रीनारायण चैधरी ने बताया कि लम्बे समय से किसानों द्वारा सरकारों से अपनी समस्याओं का स्थायी समाधान निकालने की मांग की गई, लेकिन सरकारों द्वारा इसका स्थायी हल निकालने में कोई रुचि नहीं दिखाई गई। पिछले कुछ समय से किसानांे को कुछ उम्मीद बनी कि अब शायद उसकी समस्याएं समाप्त होंगी किन्तु जब यह उम्मीद टूटने लगी तो देश के किसानांे में आक्रोश फैला। अभी हाल ही में कृषि उत्पाद के दाम समर्थन मूल्य से नीचे आ गए, सरकार द्वारा खरीद की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई, भुगतान भी नहीं हो रहा था। ऐसे कई कारणों से किसान आंदोलन के लिए उद्वेलित हुए। चैधरी ने कहा कि लोकतंत्र में आंदोलन जनता का हक है। दमन की नीति उसका समाधान नहीं है, जबकि आंदोलन उत्पन्न ही सरकारों की सूझबूझ की कमी और अहितकारी नीतियों के कारण होता है।
इन सब बातों को देखते हुए भारतीय किसान संघ ने भी कई प्रांतों मे आंदोलन शुरू किए। भारतीय किसान संघ का यह सिद्धान्त है कि हम हमेशा देशहित का ध्यान पहले रखेंगे। आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा, उसमंे हिंसा नहीं होने देंगे तथा कार्यकर्ता पूर्ण अनुशासन में रहेंगे। लेकिन आंदोलन में मालवा में जब हमारे आंदोलन में कुछ बाहरी तत्वों के शामिल होकर हिंसा फैलाने की जानकारी हुई तथा उसी समय सरकार द्वारा क्षेत्रीय मांगांे को मान्य कर लिया गया, तब आंदोलन वापस ले लिया गया। हमें प्राप्त सूचना सच साबित हुई तथा उन तत्वों द्वारा हिंसा फैलाने का प्रयास किया गया।
तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान में भी आंदोलन हुए। राजस्थान में भारतीय किसान संघ द्वारा किया गया आंदोलन भी अनुशासनबद्ध और अहिंसक रहा किन्तु स्वरूप बड़ा होने से अंत में सरकार को झुकना पड़ा तथा किसानों की सभी मांगें मान ली गई। इसके बावजूद अभी भी किसानांे मंे बहुत आक्रोश व्याप्त है। इस पर हम सतत् विचार कर रहे हैं।
भारतीय किसान संघ की स्थापना से ही यह मान्यता रही है कि किसान को उसकी उत्पाद का लागत मूल्य तथा उस पर लाभांश जोड़कर ‘‘लाभकारी मूल्य’’ प्राप्त होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से देश मंे कई सरकारें आने जाने के बाद भी अभी तक ‘‘लाभकारी मूल्य’’ प्राप्त नहीं हो सका।
देश मंे कृषि उत्पाद आयात निर्यात की अब तक कोई ठोस नीति नहीं बन सकी जिसके अभाव में कृषि उत्पाद का जो आयात-निर्यात होता है उसमें किसान हित को कोई महत्व नही दिया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि बम्पर फसल आने के बावजूद कभी निर्यात प्रतिबन्धित किया जाता है तो कभी आयात जारी रखा जाता है। दोनों ही परिस्थितियांे मंे कृषि उत्पाद के मूल्य धराशायी हो जाते हंै और किसान ठगा सा रह जाता है। इस वर्ष ऐसा ही दलहन के मामले में हुआ। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा दलहन पर बोनस की घोषणा के बाद किसानों ने उत्पादन 35 प्रतिशत बढ़ा दिया, लेकिन बाद में सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए भी तैयार नहीं हुई। दाल का आयात भी जारी रखा जिसका सीधा नुकसान किसान और उपभोक्ता को हुआ।
चैधरी ने कहा कि किसान संघ चाहता है कि उत्पादन का सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से बाजार में जब उक्त उत्पाद का दाम कम होता है तब उसकी पूर्ति के लिए सरकार द्वारा एक ‘‘मूल्य स्थिरीकरण कोष’’ बनाकर, ‘‘भावांतर योजना’’ तत्काल लागू की जाए, जैसा कि मध्य प्रदेश एवं आंधप्रदेश में किया गया है।
खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन एवं डेरी आदि को बढ़ावा देकर गांवों से होने वाले पलायन को रोका जा सकता है। इससे ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर, गावों मंे ही उपलब्ध होंगे और नशे एवं अपराधों पर भी अंकुश लगेगा। साथ ही, शहरों पर दबाव घटेगा।
उन्होंने कहा कि भारतीय किसान संघ कर्जमाफी का नहीं, बल्कि किसान की कर्जमुक्ति का पक्षधर है। किसान भोगविलास के लिए कर्ज नहीं लेता। वह मेहनत की रोटी और इज्जत की जिंदगी वाला आदमी है। कर्जमाफी की बात भी ऐसे उदाहरणों से उठती है जिनमें सरकारें बड़े-बड़े उद्योगों के मोटे कर्ज माफ कर देती है। किसान संघ नहीं चाहता कि कर्जमाफी की आदत डालकर बेईमानी को बढ़ावा दिया जाए। बेहतर यह कि नीतियों में सुधार कर उसे कर्ज चुकाने में सक्षम बनाया जाए। किसान संघ चाहता है कि मौजूदा परिस्थितियों में देश के सभी किसानों को प्रति एकड़ एक निश्चित राशि तय कर सीधे उनके खाते में जमा करने की योजना बनाकर उसे तत्काल लागू किया जाए।
सदस्यता अभियान में सभी जिलों तक पहुंचने की योजना
-चैधरी ने बताया कि आगामी योजना में अगले वर्ष पूरे देश मंे भारतीय किसान संघ की सदस्यता अभियान की शुरुआत होने जा रही है जो हर तीन साल में होती है। दस रुपए शुल्क पर तीन साल की सदस्यता होती है। उन्होंने कहा कि संघ का प्रयास है कि देश के प्रत्येक प्रांत तक उसकी पहंुच हो। सभी विकास खंडांे तक किसान संघ पहंुचे तथा अधिक से अधिक ग्राम समितियां बने।
राजस्थान की फसल बीमा योजना पूरी तरह फेल
-पत्रकारों से चर्चा के दौरान अ.भा. महामंत्री बद्रीनारायण चैधरी ने पत्रकार द्वारा उठाए गए फसल बीमा पर सवाल के जवाब में कहा कि राजस्थान में फसल बीमा पूरी तरह फेल है। इसे किसानों के साथ उन्होंने धोखा कहा। खासकर बाजरा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि फसल का 40 प्रतिशत हिस्सा बीमा कम्पनी के पास प्रीमियम के तौर पर चला जाएगा, ऐसे में किसान की जेब में क्या रह जाएगा। चैधरी ने कहा कि किसान संघ के आंदोलन के बाद राजस्थान सरकार ने 80 में से करीब 65 मांगों पर काम शुरू कर दिया है, जिसका असर जल्द ही देखने को मिलेगा। जल्द ही शेष मांगों पर भी सहमति बनने की उम्मीद है।
अखिल भारतीय अध्यक्ष ने जारी किया वक्तव्य
-तीन दिवसीय बैठक के बाद भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष आई. एन. बस्वेगौड़ा ने वक्तव्य जारी किया है जिसमें देश में किसानों के मौजूदा हालातों, जरूरतों की समीक्षा के साथ समाधान के लिए जरूरी कदमों को रेखांकित करते हुए सुझाव दिए गए हैं।