किसान शिक्षित नहीं, पढ़े-लिखे खेतों से दूर : बद्री नारायण जी ,महामंत्री किसान संघ


वाराणसी।
कृषि की वर्तमान चुनौतियों का सामना करने में हमारी वर्तमान कृषि प्रणाली असफल साबित हो रही है। देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है फिर भी किसान समृद्ध नहीं हो पा रहे हैं। इसके कारण कृषि व्यवसाय के प्रति किसानों का आकर्षण कम होता जा रहा है। खेती करने वाले पढ़ाई और पढ़ाई करने वाले खेती से दूर हैं। दिल्ली में बैठे जो लोग कृषि को लेकर नीति बनाते हैं वे दोनों से दूर हैं। ऐसे में जरूरी है कि नीति बनाने वाले शिक्षा के साथ ही खेती में भी परिपूर्ण हो। इसके बाद ही देश की कृषि व्यवस्था बेहतर हो पाएगी। 

ये बातें बुधवार को बीएचयू परिसर स्थित शताब्दी कृषि प्रेक्षागृह में भारतीय किसान संघ के महासचिव बद्री नारायण ने कही। वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय किसान संघ तथा एवं कृषि विज्ञान संस्थान, बीएचयू की ओर से आयोजित देश का पहले दो दिवसीय राष्ट्रीय बौद्धिक सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त कर रहे थे। सम्मेलन में जमीन से जुड़े किसानों से संबद्ध विश्व के सबसे कृषि विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों की भागीदारी हुई। पहली बार ऐसा आयोजन हो रहा है, जिसमें नीति नियंता एवं खेती करने वाले एक मंच पर आए थे। सम्मेलन के आयोजन सचिव दिनेश कुलकर्णी ने कहा कि आज का कृषि स्नातक खेती को अपनाने को तैयार नहीं है और वह सरकारी तथा निजी कंपनियों में कार्य कर रहा है। ऐसे में नवीन कृषि तकनीकी किसानों के खेत तक नहीं पहुंच पा रही है। उन्होंने कहा कि जो लोग कृषि की पढ़ाई कर रहे हैं वे भी खेती नहीं करना चाहते। आइसीएआर के उप-महानिदेशक (कृषि शिक्षा) डा. एन.एस. राठौर ने बताया कि भविष्य में कृषि स्नातकों के लिए अपार अवसर उपलब्ध होने जा रहे हैं और उन्हें कृषि व्यवसाय की तरफ आकर्षित करने के लिए अनेक योजनाएं बनाई गई हैं। 

अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. जी.सी. त्रिपाठी ने कहा कि यदि समाज की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा पद्धति विकसित की जाए और उसमें चरित्र निर्माण का सही समायोजन किया जाए तो वर्तमान शिक्षा पद्धति समाज को विकसित कर सकती है। कामधेनु विश्वविद्यालय के कुलपति डा. एम.सी. वाष्र्णेय ने बताया कि देसी गायों तथा अन्य पशु प्रजातियों में दुग्ध उत्पादन की क्षमता संकर प्रजातियों से कहीं अधिक है। आवश्यकता है कि नई प्रजनन विधियों से इनका उन्नयन कर संरक्षित किया जाए। इस मौके पर संस्थान के निदेशक प्रो. ए. वैशंपायन, प्रो. पी.के. सिंह, प्रो. राकेश सिंह, प्रो. राजेश सिंह, प्रो. अनिल चौहान आदि मौजूद थे। संचालन प्रो. ओपी मिश्रा व धन्यवाद ज्ञापन डा. आशुतोष ने किया।